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Netaji

आंखो आंखो में कुटिल हंसी थी  मुख में था तुम्हारे गम  तुम्हारी कुछ बातों से हिंदू और मुस्लिम में बटे हम बाते  उनकी बहोत  सुहानी थी  खून मेरा भी जलती थी  चल उठा मै  भी  तलवार  लेकर  हिन्दू और मुसलिम को फिर से बाट कर  सियासत की तो आदत है लहू पीने की  वरना अमन और चैन यहाँ भी था  फिर लोकतंत्र का व्यंग्यात्म उपयोग करने वाले नेता जी का जन्म हुआ  हालत यु हुए की मऊ हुआ २००२ भी हुआ  इंसान की तो हसरत होते ह बाते भूलने की  कुछ तुम भूले कुछ मै भुला  और बटते चलेगये हम